एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा
मिल्खा सिंह
भारत के जाने-माने एथलीट मिल्खा सिंह का शुक्रवार 18 जून की रात को कोरोना के कारण निधन हो गया| उनका इलाज चंडीगढ़ में चल रहा था| 19 मई को 91 वर्ष की उम्र में वह कोरोना पॉजिटिव आए जिसके चलते वह कुछ दिन के लिए चंडीगढ़ में ही घर में आइसोलेट हो गए| 24 मई को उनकी हालत बिगड़ने के कारण उन्हें मोहाली के फोर्टिस हॉस्पिटल के आईसीयू में भर्ती किया गया| इसके बाद 3 जून को उन्हें वापस चंडीगढ़ Post Graduate Institute of Medical Education And Research (PGIMER) में ले जाया गया उनकी पत्नी का भी कोविड के कारण निधन हुआ, जिसके 5 दिन बाद मिल्खा सिंह भी नहीं रहे|
बचपन से ही कठिनाइयों का सामना किया
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को पंजाब के गोविंदपुरा गांव (जो कि आज पाकिस्तान का एक हिस्सा है) में एक राजपूत सिख परिवार में हुआ था| भारत के बंटवारे के दौरान अपना परिवार खो देने के बाद वह अपनी जान बचाने के लिए 15 किलोमीटर तक भागे| आगे के कुछ साल उनके लिए कठिन रहे| उन्हें काफी समय के लिए रिफ्यूजी कैंप में रहना पड़ा| इसके अलावा टिकट ना होने पर सफर करने के कारण उन्हें तिहाड़ जेल में डाल दिया गया जिसके बाद उनकी बहन ने उन्हें जेल से निकाला|

प्रयास और उपलब्धियां
मिल्खा सिंह ने जी-जान लगाकर ट्रेनिंग की, पहाड़ों से लेकर यमुना नदी के किनारों तक उन्होंने हर जगह दौड़ने की प्रैक्टिस की| उनकी ट्रेनिंग इतनी तीव्र रही कि उन्हें खून की उल्टियां तक हुई लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी|
फिर 1956 में पटियाला में हुए नेशनल गेम्स में वह लाईमलाईट में आए| उसी साल उन्होंने मेलबर्न ओलंपिक गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर कैटेगरी के अंदर भारत का प्रतिनिधित्व किया| जिसके बाद दौड़ना उनकी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया|
1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में 440 याड रेस के चलते उन्होंने 46.6 सेकंड का रिकॉर्ड बनाकर भारत का सर गर्व से ऊंचा कर दिया|वह ऐसे पहले खिलाड़ी रहे जिन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल अपने नाम किया| एशियन गेम्स में जीतने के बाद उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया| वह 200 मीटर के साथ 400 मीटर का गोल्ड मेडल भी अपने साथ घर ले कर गए| साल 1958 उनके लिए एक सुनहरा साल रहा|
1960 में उनकी कुछ पुरानी यादें ताजा हुई जब उन्हें एक रेस के लिए पाकिस्तान जाना पड़ा| हालांकि वह वहाँ नहीं जाना चाहते थे क्योंकि वहां उन्होंने अपने माता-पिता खोए थे लेकिन नेहरू जी के कहने पर वह मान गए| पाकिस्तान के चैंपियन रहे अब्दुल खान से मिल्खा ने 7 यार्ड के मार्जिन पर 20.7 सेकंड की टाइमिंग के साथ रेस जीतकर एक नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया| इसके बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने उन्हें फ्लाइंग सिख का नाम दिया| इसी के साथ उन्होंने रोम ओलंपिक में 400 मीटर की रेस 45.70 सेकेंड में पूरी कर नेशनल रिकॉर्ड बनाया जिसे 38 साल तक कोई तोड़ नहीं पाया|
हालांकि ओलंपिक गेम्स का सफर भारत और मिल्खा के लिए दिल तोड़ने वाला रहा| 0.1 सेकेंड के अंतर से मिल्खा साउथ अफ्रीकन मेलकॉम से हार गए| इस असफलता ने उनका दिल तोड़ दिया यहाँ तक कि वह कुछ दिनों तक रोए| उनको लगने लगा कि उन्होंने पूरे देश की उम्मीद पर पानी डाल दिया| लेकिन इसके बावजूद वे भारत के बेस्ट एथलीट में से एक रहे|
मिल्खा सिंह के लिए दौड़ने का मतलब सिर्फ मेडल जीतना नहीं बल्कि टाइमिंग था| वह हर दौड़ के साथ अपनी टाइमिंग बीट करना चाहते थे| वह निश्चित रूप से एक अच्छे एथलीट थे| उन्होंने एक इवेंट के चलते अपनी ख्वाहिश व्यक्त की थी कि क्रिकेट, बैडमिंटन, कुश्ती और अन्य खेलों के साथ एथलेटिक जैसे खेलों पर भी ध्यान दिया जाए और उन्हें आगे बढ़ाएं| मिल्खा सिंह चाहते थे कि जो मेडल रोम ओलंपिक्स में वह अपने नाम ना कर पाए उसे कोई भारतीय जीते| मिल्खा सिंह अपनी मेहनत और लगन से सभी के दिलों में अपनी एक अच्छी छाप छोड़ गए |
राष्ट्रहित परिवार मिल्खा सिंह द्वारा देश को दिलाई गई तमाम उपलब्धियों पर गर्व करते हुए मिल्खा सिंह को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है|
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